Kamukta Sex Stories – वासना के अतिरेक में पंकज ने निराली के हाथ अपने कांपते हाथों में ले लिये. जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होंने रोमांचित हो कर उसे अपनी तरफ खींचा. झिझकते हुए निराली उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें अपने गले पर महसूस होने लगी. पंकज ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथो

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… तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो पंकज की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे. वे बुदबुदा उठे … इसी वक़्त आना था …. पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर निराली खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर पंकज ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी दीपिका गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. दीपिका की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने दीपिका को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण दीपिका को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये पंकज इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली निराली पर आया हुआ था. निराली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी निराली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. दीपिका थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने निराली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. निराली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. पंकज जानते थे कि निराली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही निराली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. पंकज जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर निराली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
निराली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. निराली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. निराली अंदर काम कर रही थी. जब उसने पंकज के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? … तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए पंकज ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब दीपिका यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
निराली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता … पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ पंकज ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” निराली ने कहा.
निराली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही पंकज का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘निराली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? … खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ निराली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
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निराली की देसी कसक
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ निराली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ पंकज ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” निराली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” निराली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर पंकज मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
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निराली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
निराली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
निराली के हाथ को सहलाते हुए पंकज ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर निराली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ पंकज ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है …’’
यह सुनते ही पंकज खुश हो गए. उन्होंने निराली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘मैं कहाँ इंकार कर रही हूं पर पहले मेरी बात तो सुन लो, बाबूजी.’’ निराली थोड़ी शंका से बोली.
अब पंकज को इत्मीनान हो गया था कि काम बन चुका है. उन्होंने बेसब्री से कहा, ‘‘बात बाद में सुनूंगा. पहले तुम मेरी बाहों में आ जाओ.’’
निराली कुछ कहती उससे पहले उन्होंने उसे खींच कर अपनी बाहों में भींच लिया. उनके होंठ निराली के गाल से चिपक गए. वे उत्तेजना से उसे चूमने लगे. निराली ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया, “बाबूजी, आज नहीं. … आपको दफ्तर जाना है. कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.”
अगले चौबीस घंटे पंकज पर बहुत भारी पड़े. उन्हें एक-एक पल एक साल के बराबर लग रहा था. वे निराली की कल्पना में डूबे रहे. उनकी हालत सुहागरात को दुल्हन की प्रतीक्षा करते दूल्हे जैसी थी. किसी तरह अगली सुबह आई. रोज की तरह सुबह आठ बजे निराली भी आ गई. जब वो अन्दर जाने लगी तो पंकज ने पीछे से उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. वे उसे तुरंत बैडरूम में ले जाना चाहते थे लेकिन निराली ने उनकी पकड़ से छूट कर कहा, “ये क्या, बाबूजी? मैं कहीं भागी जा रही हूँ? पहले मुझे अपना काम तो कर लेने दो.”
“काम की क्या जल्दी है? वो तो बाद में भी हो सकता है!” पंकज ने बेसब्री से कहा.
“नहीं, मैं पहले घर का काम करूंगी. आपने कहा था ना कि आप मेरी हर शर्त मानेंगे.”
अब बेचारे पंकज के पास कोई जवाब नहीं था. उन्हें एक घंटे और इंतजार करना था. वे अपने बैडरूम में चले गए और निराली अपने रोजाना के काम में लग गई. पंकज ने कितनी कल्पनाएं कर रखी थीं कि वे आज निराली के साथ क्या-क्या करेंगे! एक घंटे तक वही कल्पनाएं उनके दिमाग में घूमती रहीं. बीच-बीच में उन्हें यह भी लग रहा था कि निराली आज काम में ज्यादा ही वक़्त लगा रही है! पंकज का एक घंटा बड़ी बेचैनी से बीता. कभी वे बिस्तर पर लेट जाते तो कभी कुर्सी पर बैठते … कभी उठ कर खिड़की से बाहर झांकते तो कभी अपनी तैय्यारियों का जायज़ा लेते (उन्होंने तकिये के नीचे एक लग्जरी कन्डोम का पैकेट और जैली की एक ट्यूब रख रखी थी.)
नौ बज चुके थे. धूप तेज हो गई थी. पंखा चलने और खिड़की खुली होने के बावजूद कमरे में गर्मी बढ़ गई थी. पर पंकज को इस गर्मी का कोई एहसास नहीं था. उन्हें एहसास था सिर्फ अपने अन्दर की गर्मी का. वे खिड़की के पर्दों के बीच से बाहर की तरफ देख रहे थे कि उन्हें अचानक कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने मुड़ कर देखा. निराली दरवाजे के पास खड़ी थी. उसकी नज़रें शर्म से झुकी हुई थीं.
निराली के कपडे हमेशा जैसे ही थे पर पंकज को लाल रंग की साडी और ब्लाउज में वो नयी नवेली दुल्हन जैसी लग रही थी. वे कामातुर हो कर निराली की तरफ बढे. उनकी कल्पना आज हकीकत में बदलने वाली थी. पास पहुँच कर उन्होने निराली को अपने सीने से लगा लिया और उसे बेसब्री से चूमने लगे. उन्होने अब तक अपनी पत्नी के अलावा किसी स्त्री को नहीं चूमा था. निराली को चूमने में उन्हें एक अलग तरह का मज़ा आ रहा था. जैसे ही उनका चुम्बन ख़त्म हुआ, निराली थोड़ा पीछे हट कर बोली, “ऐसी क्या जल्दी है, बाबूजी? … खिड़की से किसी ने देख लिया तो?”
“खिड़की के बाहर तो सुनसान है. वहां से कौन देखेगा?”
“मर्द लोग ऐसी ही लापरवाही करते हैं. उनका क्या बिगड़ता है? बदनाम तो औरत होती है. … हटिये, मैं देखती हूँ.”
निराली खिड़की के पास गई. उसने पर्दों के बीच से बाहर झाँका. इधर-उधर देखने के बाद जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने पर्दों को एडजस्ट किया और पंकज के पास वापस आ कर बोली, “सब ठीक है. अब कर लीजिये जो करना है.”
“करना तो बहुत कुछ है. पर पहले मैं तुम्हे अच्छी तरह देखना चाहता हूँ.”
“देख तो रहे हैं मुझे, अब अच्छी तरह कैसे देखेंगे?”
“अभी तो मैं तुम्हे कम और तुम्हारे कपड़ों को ज्यादा देख रहा हूँ. अगर तुम अपने कपडों से बाहर निकलो तो मैं तुम्हे देख पाऊंगा.” पंकज ने कहा.
“मुझे शर्म आ रही है, बाबूजी. पहले आप उतारिये,” निराली ने सर झुका कर कहा.
नौकरानी के सामने कपडे उतारने में पंकज को भी शर्म आ रही थी पर इसके बिना आगे बढ़ना असंभव था. पंकज अपने कपड़े उतारने लगे. यह देख कर निराली ने भी अपनी साडी उतार दी. पंकज अपना कुरता उतार चुके थे और अपना पाजामा उतार रहे थे. निराली को उनके लिंग आकार अभी से दिखाई देने लगा था. उसने अपना ब्लाउज उतारा. पंकज की नज़र उसकी छाती पर थी. जैसे ही उसने अपनी ब्रा उतारी, उसके दोनो स्तन उछल कर आज़ाद हो गये. फिर उसने अपना पेटीकोट भी उतार दिया. उसने अन्दर चड्डी नही पहनी थी. … उसका गदराया हुआ बदन, करीब 36 साइज़ के उन्नत स्तन, तने हुए निप्पल, पतली कमर, पुष्ट जांघें और जांघों के बीच एक हल्की सी दरार … यह सब देख कर पंकज की उत्तेजना सारी हदें पर कर गई. उन्होंने अनुभव किया कि निराली का नंगा शरीर दीपिका से ज्यादा उत्तेजक है. वो अब उसे पा लेने को आतुर हो गये.
अब तक पंकज भी नंगे हो चुके थे. निराली ने लजाते हुए उनके लिंग को देखा. उसे वो कोई खास बड़ा नहीं लगा. उससे बड़ा तो उसके मरद का था. वो सोच रही थी कि यह अन्दर जाएगा तो उसे कैसा लगेगा. … शुरुआत उसने ही की. वो पंकज के पास गई और उनके लिंग को अपने हाथ में ले कर उसे सहलाने लगी. उसके हाथ का स्पर्श पा कर लिंग तुरंत तनाव में आ गया. पंकज ने भी उसके स्तनो को थाम कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर बाद पंकज निराली को पलंग पर ले गए. दोनो एक दूसरे को अपनी बाहों में भर कर लेट गये. दीपक ने अपने एक हाथ से उसके निपल को मसलते हुए कहा, “निराली, … तुम नही जानती कि मैं इस दिन का कब से इंतजार कर रहा था!”
“मैं खुश हूं कि मेरे कारण आपको वो सुख मिल रहा है जिसकी आपको जरूरत थी,” निराली ने पंकज के लिंग को मसलते हुए कहा.
पंकज फुसफुसा कर बोले, “तुम्हारे हाथों में जादू है, निराली.”
निराली बोली, “अच्छा? लेकिन यह तो मेरे हाथ में आने से पहले से खड़ा है.”
पंकज भी नहीं समझ पा रहे थे कि आज उनके लिंग में इतना जोश कहाँ से आ रहा है. वो भी अपने लिंग के कड़ेपन को देख कर हैरान थे और कामोत्तेजना से आहें भर रहे थे. … निराली ने अपनी कोहनी के बल अपने को उठाया और वो पंकज की जांघों के बीच झुकने लगी. पंकज यह सोच कर रोमांचित हो रहे थे कि निराली उनके लिंग को अपने मुह में लेने वाली है. उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि निराली जैसी कम पढ़ी स्त्री मुखमैथुन से परिचित होगी. उनकी पढ़ी-लिखी मॉडर्न पत्नी ने भी सिर्फ एक-दो बार उनका लिंग मुंह में लिया था और फिर जता दिया था कि उन्हें यह पसंद नहीं है.
“ओह! … कितना उत्तेजक होगा यह अनुभव!” पंकज ने सोचा और धीमे से निराली के सर के पीछे अपना हाथ रखा. उसके सर को आगे की तरफ धकेल कर उन्होंने यह जता दिया कि वे भी यही चाहते है. निराली ने उनके लिंगमुंड को चूमा. उसके होंठ लिंग के ऊपरी हिस्से को छू रहे थे और तीन-चार बार चूमने के बाद निराली ने अपनी जीभ लिंग पर फिरानी शुरू कर दी …. पंकज आँखें बंद कर के इस एहसास का आनंद ले रहे थे. निराली ने अपना मुंह खोला और लिंग को थोड़ा अंदर लेते हुए अपने होंठों से कस लिया. उसके ऐसा करते ही पंकज को अपने लिंग पर उसके मुह की आंतरिक गरमाहट महसूस हुई. उन्हें लगा कि उनका वीर्य उसी समय निकल जाएगा.
उन्होंने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर के अपनी उत्तेजना और रोमांच पर काबू किया. फिर उन्होंने अपने हिप्स उसके मुह की तरफ उठा दिये जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लिंग उसके मुह मे जा सके और वो उसके पूरे मुह की गरमाहट अपने लिंग पर महसूस कर सके. लेकिन उनकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी कि वे निराली का सर पकड़ कर उसे अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. अब निराली का मुह पूरे लिंग को अपने अंदर समा चुका था.
निराली कुछ देर और उनके लिंग को अपने मुह में लिए चूसती रही पर पंकज का यौन-तनाव अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था. उन्होंने माला को चित लिटा दिया. वो समझ गई कि अब वक्त आ चुका है. उसने अपनी टाँगे चौड़ी कर दी. पंकज उस की फैली हुई टाँगों के बीच आये और उसके ऊपर लेट गये. वे उसके गरम और मांसल शरीर का स्पर्श पा कर और भी कामातुर हो गए. उनका उत्तेजित लिंग निराली की योनि से टकरा रहा था. उनकी बाँहें निराली के गिर्द भिंच गयीं और उनके नितम्ब बरबस ऊपर-नीचे होने लगे. निराली ने अपनी टांगें ऊपर उठा दी. लिंग ने अनजाने में ही अपना लक्ष्य पा लिया और योनी के अन्दर घुस गया.
पंकज अपने लिंग पर योनि की गरमाहट को पूरी तरह से महसूस कर पा रहे थे. योनी की जकड़ उतनी मजबूत नहीं थी जितनी उनकी पत्नी की योनी की होती थी. लेकिन लिंग पर नई योनी कि गिरफ्त रोमांचकारी तो होती ही है और पंकज भी इसका अपवाद नहीं थे. लिंग पर नई योनी का स्पर्श, शरीर के नीचे नई स्त्री का शरीर और आँखों के सामने एक नई स्त्री का चेहरा – इन सब ने पंकज को उतेजना की पराकाष्ठ पर पंहुचा दिया.
उनका लिंग जल्दी वीर्यपात न कर दे इसलिये अपना ध्यान योनी से हटाने के लिए पंकज ने निराली के निचले होंठ को अपने होंठों में दबाया और उसे चूसने लगे. निराली ने भी उनका साथ दिया और वो उनका ऊपर वाला होंठ चूसने लगी. अब पंकज ने अपनी जीभ निराली के मुह में घुसा दी. निराली भी पीछे नहीं रही. दोनों की जीभ एक-दूसरी से लड़ने लगीं. इसका परिणाम यह हुआ कि पंकज अपनी उत्तेजना पर काबू खो बैठे. उनके नितम्ब उन के वश में नहीं रहे और बेसाख्ता फुदकने लगे. उनका लिंग सटासट योनि के अंदर-बाहर हो रहा था. उसमे निरंतर स्पंदन हो रहा था. उनकी साँसे तेज हो गई थी. उनके मचलने के कारण लिंग योनि के बाहर निकल सकता था.
निराली ने इस सम्भावना को ताड़ लिया. उसने अपने पैर उनके नितम्बों पर कस कर उनके धक्कों को नियंत्रित करने की कोशिश की. वह सफल भी हुई पर एक मिनट बाद पंकज का लिंग फिर से बेलगाम घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगा. उनका मुंह खुला हुआ था और उससे आहें निकल रही थी. लिंग तूफानी गति से अंदर बाहर हो रहा था. अचानक पंकज का शरीर अकड़ गया और उनके लिंग ने योनी में कामरस निकाल दिया. वे निराली के ऊपर एक कटी हुई पतंग की तरह गिर गए. … वे अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझ रहे थे कि एक लम्बे अर्से के बाद आज उन्हें एक पूर्ण तृप्ति देने वाले संभोग का अनुभव हुआ था.
जब पंकज कामोन्माद से उबरे तो उन्हें एहसास हुआ कि निराली ने तो उन्हें तृप्ति दे दी थी पर वे उसे तृप्त नहीं कर पाए थे. वे निराली के ऊपर से उतर कर उसकी बगल में लेट गए. लंबी साँसे लेते हुए वे बोले, “निराली, बहुत जल्दी हो गया ना! तुम तो शायद प्यासी ही रह गई.”
निराली उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली, “पहली बार नई औरत के साथ ऐसा हो जाता है. पर अभी हमारे पास वक़्त है. आप थोड़ी देर आराम कीजिये, मैं चाय बना कर लाती हूं.”
वो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर पहले बाथरूम में गई और फिर किचन में. उसके जाने के दो मिनट बाद पंकज बाथरूम में गये. वापस आ कर उन्होने अंडरवियर पहना और कुर्सी पर बैठ गये. पिछले कुछ मिनटों में जो उनके साथ हुआ था वो उनके दिमाग में एक फिल्म की तरह चलने लगा. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री के साथ सम्भोग किया था! पर सामने पड़े निराली के कपड़े बता रहे थे कि यह सच था.
————क्रमशः————
आज पंकज ने अपनी सीमायें लांग दी थी, एक परायी स्त्री के साथ सम्बन्ध बना लिए. वो अभी अपनी कामवाली के साथ! अब इन xnxx stories में आगे पढ़िए ये नयी आज़ादी पंकज को कहाँ ले जाती है..

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