एक 20-22 साल का बेटा था जो ग्रेजुएशन करके नौकरी की तलाश में था और एक बेटी थी, करीब 18 साल की, इन्टर में पढ़ती थी.
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मैं जब से इस मुहल्ले में आया था, दिल गुप्ताइन पर फिदा था, किसी भी तरह उसको चोदने का रास्ता तलाश करना था.
hot indian sex storiesजहां चाह वहां राह.
एक दिन सुबह कहीं जाने के लिए कार निकाल रहा था तो देखा कि गुप्ताइन की लड़की डॉली छाता लेकर खड़ी थी और गुप्ता जी स्कूटर निकाल रहे थे.
बूंदाबांदी हो रही थी, मैंने गुप्ता जी से पूछा- सर सुबह सुबह कहाँ?
गुप्ता जी बोले- डॉली का एग्जाम है, स्कूल तक छोड़ने जा रहा हूँ.
मैंने कहा- मैं उधर ही जा रहा हूँ, छोड़ दूँगा.
थोड़ी नानुकुर के बाद उन्होंने डॉली को मेरे साथ भेज दिया.
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शाम को गुप्ताइन से नजरें मिलीं तो लगा कि बिना बोले थैंक्स कह रही हो.
इसी तरह तीन चार बार ऐसा हुआ कि मैंने डॉली को उसके स्कूल ड्राप किया.
इससे गुप्ताइन तो खुश हो रही थी लेकिन मेरे मन में एक नया विचार पनप गया कि यदि डॉली को चोदने का मौका मिले तो क्या कहने.
हालांकि डॉली कोई बहुत खूबसूरत लड़की नहीं थी. दुबला पतला शरीर, सांवला रंग, पांच फीट छह सात इंच का लम्बा कद.
दो चीजें बड़ी आकर्षक थीं, बोलती आँखें और मुस्कुराते होंठ.
अब मेरा टारगेट बदल चुका था.
तभी एक दिन बातों बातों में गुप्ता जी ने बताया कि शनिवार को डॉली का एक पेपर लखनऊ में है, मुझे उसको लेकर जाना पड़ेगा.
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मैंने तुरन्त कहा- शनिवार को तो मैं लखनऊ जा रहा हूँ, दो घंटे का काम है.
इसको इसके सेन्टर पर ड्राप कर दूंगा और अपना काम निपटा कर वापसी में से इसको ले लूंगा.
गुप्ता जी इतना बड़ा एहसान लेने को तैयार नहीं थे लेकिन धीरे धीरे मान गये.
अब मैं डॉली को चोदने की अपनी योजना बनाने में लग गया.
तय कार्यक्रम के अनुसार शनिवार को सुबह सात बजे मैं और डॉली लखनऊ के लिए निकल पड़े, रास्ते में चाय नाश्ता करने के बाद लगभग नौ बजे डॉली के सेन्टर पहुंच गये.
वहां पहुंच कर डॉली ने मेरे फोन से ही गुप्ताइन को पहुंचने की सूचना दी.
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साढ़े नौ बजे वह अन्दर चली गई, उसकी छुट्टी एक बजे होनी थी.
मैं वहाँ से निकला, अच्छे से होटल में एक कमरा बुक किया, अपना बैग रखकर थोड़ी देर आराम किया और डॉली को लेने के लिए उसके सेन्टर पहुंच गया.
डॉली बाहर आई, कार में बैठी तो मैंने पूछा- पेपर कैसा हुआ?
तो खुशी से उछलकर बोली- बहुत अच्छा.
मैंने कहा- बहुत भूख लगी है, पहले खाना खा लें.
एक अच्छे से रेस्टोरेन्ट में खाना खाया.
खाने के दौरान मैंने उसको बताया कि मेरा काम नहीं हो पाया है, शाम तक हो गया तो ठीक है वरना रात को रुकना पड़ेगा.
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यहां मेरी दीदी रहती हैं, उनके घर रुक जायेंगे.
मेरे कहने पर उसने यही बात गुप्ताइन को बता दी.
अब मैंने डॉली से कहा- चार घंटे का समय कैसे गुजरेगा, चलो पिक्चर देखते हैं.
कंजूस गुप्ता जी के मुकाबले मेरा राजसी खर्च देखकर डॉली खुश भी थी और प्रभावित भी.
हम लोगों ने पिक्चर देखी, खाया पिया और वहीं मॉल से मैंने डॉली को एक अच्छी सी मिडी फ्राक दिला दी.
शाम के सात बज चुके थे. मैंने एक फर्जी कॉल की,
थोड़ी देर बात करने के बाद डॉली को बताया कि रात को रुकना पड़ेगा, चलो दीदी के घर चलते हैं, तुम अपनी मम्मी को बता दो.
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डॉली ने गुप्ताइन को बताया, इसी बीच मैंने फोन ले लिया और गुप्ताइन को तसल्ली दे दी कि कल बारह बजे तक हम लोग वापस पहुंच जायेंगे.
अब मैंने डॉली से कहा- मैं सोच रहा हूँ कि दीदी लखनऊ के दूसरे सिरे पर रहती हैं, उनके यहाँ इतनी दूर जाने से अच्छा है कि यहीं आसपास किसी होटल में रुक जायें, होटल में रहने का मजा ही कुछ और है.
डॉली क्या इन्कार करती.
मैंने गाड़ी होटल की तरफ मोड़ दी, कमरे में पहुंच कर मैंने पूछा- कमरा कैसा है?
आँखें मटका कर बोली- बहुत सुन्दर.
खाना पीना खाकर आये थे, बस सोना ही था. मैंने फ्रिज से कोकाकोला की बोतल निकाली, उसमें मैंने व्हिस्की मिला रखी थी, दो घूंट पीने के बाद बोतल डॉली को दे दी, दो तीन घूंट पीकर उसने मुझे दे दी, इस तरह कोकाकोला की बोतल हम दोनों ने खाली कर दी, दो दो पेग अन्दर जा चुके थे.
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अब मैंने उसके लिए खरीदी हुई फ्राक उसको दी और कहा- नहा लो और यह पहनकर दिखाओ कैसी लगती है.
थोड़ी देर में वो नहाकर आ गई, मैंने उसकी तारीफ की और नहाने चला गया.
नहाकर अपने साथ लाई हुई टी शर्ट व लोअर पहनकर कमरे में आया तो वो सो चुकी थी.
मैं भी उसके बगल में लेट गया.
फ्राक की बैक पर लगी चेन खोलकर मैंने उसकी फ्राक उतार दी, फिर ब्रा और पैंटी.
अब डॉली मेरे सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी लेकिन इस हाल में चोदने में कोई मजा नहीं था.
मैंने कमरे की लाइट बंद की, चादर ओढ़ ली और डॉली को भी चादर में ले लिया.
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संतरे जैसी छोटी छोटी चूचियां मैंने धीरे धीरे मसलनी शुरू कीं, थोड़ी देर में निपल्स टाइट होने लगे, अब मैंने एक चूची मुंह में ले ली और हल्के हल्के से चूसने लगा.
एक हाथ डॉली की चूत पर रखकर मैं सहलाने लगा.
बारी बारी से दोनों चूचियों को चूसते और चूत को सहलाते सहलाते आधा घंटा हुआ तो डॉली की नींद खुली या यूं कहें कि उसे होश आया, बोली- अंकल बहुत नींद आ रही है.
मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डालकर हौले हौले अन्दर बाहर करते हुए कहा- आज की रात सोने के लिए नहीं है.
चूचियां चूसने में कुछ सख्ती और चूत में उंगली अन्दर बाहर करने की रफ्तार बढ़ी तो उसको मजा आने लगा.
अब मैं उठा बाथरूम गया, पेशाब करके आया और चुपचाप लेट गया. एक मिनट ही बीता था कि डॉली खिसककर मेरे पास आई और अपना हाथ मेरे सीने पर फेरने लगी, थोड़ी देर में उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी चूत पर रख दिया.
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मैं समझ गया कि लोहा गर्म है. मैंने फिर से उसकी चूची मुंह में ले ली और उसकी चूत सहलाने लगा और उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया.
वो लोअर के ऊपर से ही मेरा लंड सहलाने लगी.
जैसे जैसे वो लंड सहला रही थी, बड़ा होता जा रहा था. अब उसने अपना हाथ मेरे लोअर के अन्दर डाल दिया. मंजिल करीब आती जा रही थी लेकिन मैं किसी जल्दबाजी में नहीं था. उंगली चूत के अन्दर बाहर होने से चूत गीली हो चुकी थी. उसकी चूची छोड़ मैंने उसके होंठों पर होंठ रखे, चूसने लगा तो वो भी चूसने लगी. desisex
पड़ोसन की जवान बेटियाँ – भाग १ > Hot Indian Sex Kahani
मैंने उसको अपने सीने से लगा लिया.
नागिन की तरह मुझसे लिपटे लिपटे उसने मेरा लोअर नीचे खिसकाना चाहा तो मैंने अपना लोअर और टी शर्ट उतार दिये और दोनों फिर से लिपट गये.
Desisex kahani – घर मालिक की बहू की चुदाई
desisex kahaniहोठों से होंठ चूसते चूसते वो अपनी चूचियां मेरी छाती से रगड़ने लगी. बेताब तो मैं भी बहुत हो रहा था लेकिन मैं उसकी बेताबी देखना चाहता था.
अब उसने अपनी एक टांग मेरी टांग पर रख दी और खिसक खिसक कर अपनी चूत मेरे लंड से सटा दी.
बार बार कोशिश के बाद भी वी मेरा लंड चूत के लबों से नहीं छुआ पाई तो उसने अपने हाथ से मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुंह पर रगड़ने लगी.
उसे न होठों की याद रही, न चूचियों की.
अब और देर करना मुनासिब नहीं था,
मैंने उसका हाथ अलग किया और अपने हाथ से उसकी चूत के दोनों लब खोलकर लंड का सुपारा रख दिया.
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मेरे सीने से तो लिपटी ही हुई थी, होठों में होंठ फिर आ गये और मैंने अपने हाथ से उसके चूतड़ों को सहलाना शुरू किया,
सहलाते सहलाते जब उसके चूतड़ को अपनी तरफ दबाता तो लंड का सुपारा उसकी चूत पर दबाव बनाता.
अब ज्यादा देर क्या करें,
यह सोचते हुए मैंने बेड के बगल में रखे अपने बैग से कोल्ड क्रीम की शीशी और कॉण्डोम का पैकेट निकाल लिया.
अपनी उंगलियों पर ढेर सी क्रीम लेकर अपने लंड पर और डॉली की चूत पर मल दी.
डॉली को पीठ के बल लिटा दिया,
उसके चूतड़ उठाकर गांड़ के नीचे एक तकिया रखा और कमरे की लाइट जला दी.
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लाइट जलते ही बोली- अंकल, लाइट बंद कर दीजिये प्लीज़.
मैंने लंड का सुपारा चूत के मुंह पर रखते हुए कहा- काहे के अंकल? अब ये राजा बाबू आ रहा है, अपनी रानी से कहो, सम्भालो.
इतना कहते कहते अपने दोनों हाथों से उसकी पतली सी नाजुक सी कमर पकड़ी और लंड को अन्दर दबाया.
जीवन में पचासों लड़कियों औरतों को चोदा था लेकिन इतनी टाइट और छोटी चूत पहली बार देखी थी.
जोर लगाया तो लंड का सुपारा अन्दर हो गया लेकिन डॉली की आँखें छलक आईं.
मैंने कहा- बस हो गया.
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उसके ऊपर झुककर उसके आँसू पोंछे और फिर से चूचियां चूसने लगा.
थोड़ी देर में वो तो सामान्य हो गई लेकिन मेरी हालत खराब थी कि पूरा लंड अभी बाहर था.
खैर डॉली को सहलाते सहलाते, बातों में बहलाते बहलाते मैं अपना लंड धीरे धीरे अन्दर धकेलता जा रहा था.
काफी देर बाद जब पूरा लंड उसकी चूत में समा गया तो मैं धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा.
डॉली पूरा लंड झेल गई थी, अब मैं बिल्कुल चिन्तामुक्त था.
काफी देर अन्दर बाहर करने के बाद मैंने अपना लंड बाहर निकाला, कॉण्डोम चढ़ाया और फिर से चूत के अन्दर खिसका दिया और धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा.
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अन्दर बाहर करते करते अब वो समय आ गया कि अब पैसेन्जर ट्रेन को राजधानी बनाने की इच्छा होने लगी.
रफ्तार बढ़ी, आनन्द बढ़ा, लंड फूलकर और मोटा होने लगा, धकाधक दौड़ते दौड़ते मंजिल आ गई और लंड ने पानी छोड़ दिया.
कमरे में एसी चलने के बावजूद हम दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे.
टॉवल से पसीना पोंछा, फ्रिज से जूस के दो पैक निकाले, पिये और ऐसे ही नंगे नंगे लिपटकर सो गये.
रात को तीन बजे पेशाब लगी तो मेरी नींद खुल गई.
पेशाब करके आया, दो घूंट पानी पिया और आकर लेट गया.
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एसी बहुत ठंडा कर रहा था, टेम्परेचर सेट किया.
डॉली गहरी नींद में सो रही थी.
मैंने उसकी चूचियां सहलानी शुरू कीं तो उसकी नींद खुल गई.
डॉली मेरे सीने से चिपक गई और यहां वहां चूमने लगी.
मैंने अपनी दिशा बदली और अपना मुंह उसकी चूत के पास ले जाकर चूत के लबों पर जीभ फेरना शुरू किया.
थोड़ी देर में ही वो कसमसाने लगी.
मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रखा तो सहलाने लगी.
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उसका सिर पकड़कर मैं उसका मुंह अपने लण्ड पर ले आया,
वो मेरा इशारा समझ गई और लण्ड पर जीभ फेरकर चाटने लगी.
चाटते चाटते उसने लण्ड चूसना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर में ही लण्ड टाइट होकर मूसल बन गया, इधर चूत भी लण्ड लेने को तैयार हो चुकी थी.
मैं पीठ के बल लेट गया और उसको अपने ऊपर लिटा लिया और उसकी चूची चूसने लगा.
मैं तो चूचियों से मजा ले रहा था और वो बार बार अपने चूतड़ पीछे खिसकाकर चूत को लण्ड से छुआना चाहती थी.
मैंने उसकी चूचियां छोड़ीं तो थोड़ा सा पीछे खिसकी और अपनी चूत को लण्ड पर रगड़ने लगी.
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मैंने हाथ बढ़ाकर क्रीम की शीशी उठाई और डॉली को देते हुए कहा- ये लो, राजा रानी को लगा दो.
उसने हथेली पर क्रीम लेकर लण्ड की मालिश शुरू कर दी.
लण्ड टनटनाकर चूत में जाने के लिए फड़फड़ाने लगा.
मैंने उसके हाथ से क्रीम की शीशी लेकर लण्ड पर क्रीम चुपड़ी, डॉली को कमर से पकड़कर उठाया और अपने लण्ड पर बैठा दिया.
चूत के लबों को फैलाकर लण्ड का सुपारा रखा और डॉली को कमर से पकड़कर नीचे दबाया,
सुपारा अन्दर चला गया तो मैंने उससे कहा- और नीचे दबो.
वो जैसे जैसे बैठती जा रही थी लण्ड गुफा में समाता जा रहा था.
जब पूरा लण्ड अन्दर हो गया तो मैंने उससे उचकने को कहा.
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अब वो धीरे धीरे उचकने लगी. ऊपर उठती तो आधा लण्ड चूत से बाहर निकल आता,
नीचे जाती तो लण्ड का सुपारा उसकी नाभि से टकराता.
जन्नत के मजे आ रहे थे.
मैंने उससे कहा- कब तक पैसेन्जर ट्रेन चलाओगी, राजधानी एक्सप्रेस चलाओ.
उसने धकाधक उछलना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी देर में ही रुक गई और बोली- बस अब मैं थक गई हूँ.
मैंने कहा- अच्छा! ऐसी बात है तो उतरो और घोड़ी बन जाओ.
बोली- घोड़ी बन जाऊं? मतलब?
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मैंने उसको कमर से पकड़कर घोड़ी बनाते हुए कहा- ऐसे.
अब मैंने अपने लण्ड पर कॉण्डोम चढ़ाया और डॉली के पीछे आ गया.
लण्ड का सुपारा चूत के मुंह पर रखा और अन्दर धकेला लेकिन इस पोजीशन में उसकी चूत और भी टाइट हो गई थी.
जैसे तैसे लण्ड महाराज को अन्दर किया और पैसेन्जर ट्रेन चला दी.
धीरे धीरे रफ्तार बढ़ने लगी. जब लण्ड अन्दर जाता तो आह आह करती जिससे जोश और बढ़ने लगा.
राजधानी पूरी रफ्तार में थी, तभी डॉली बोली- सुनिये, अपने राजा से कहिये दो मिनट रुक जाये.
मैं रुका, अपना लण्ड बाहर निकाला और पूछा- क्या हुआ?
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वो सीधी हो गई और लेटते हुए बोली- थक गई.
उसके चूतड़ उठाकर मैंने उसकी गांड के नीचे तकिया रखा और लण्ड उसकी चूत में डालकर मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चूचियां मलते हुए होठों का रसपान करने लगा. थोड़ी देर में ही डॉली की थकावट दूर हो गई तो मैंने लेटे लेटे ही ट्रेन स्टार्ट की. होठों से रसपान, हाथों से चूचीमर्दन तो जारी था ही. aunty sex
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पड़ोसन की जवान बेटियाँ – भाग २ > Desisex
लेटे लेटे ट्रेन चलाने में मजा नहीं आ रहा था….
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aunty sex kahaniमैं उठा, एक एक करके अपनी टांगें सीधी कीं और डॉली को उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया और उससे कहा- अब तुम करो.
वो गोद में बैठे हुए उचकने लगी.
वो उचक तो रही थी लेकिन मजा नहीं आ रहा था क्योंकि वो ज्यादा ऊंचा नहीं उचकती थी.
मैंने उससे पंजों के बल बैठने को कहा.
लम्बी टांगें होने के कारण इस तरह बैठने से वो ज्यादा उचक सकती थी.
अब जब वो उचकती तो सिर्फ सुपारा अन्दर रह जाता था.
मेरे कहने पर उसने स्पीड बढ़ाई जिससे दोनों लोग जोश में आ गये लेकिन वो ज्यादा देर तक स्पीड मेन्टेन नहीं कर पाई.
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तो मैंने उसकी गांड के नीचे तकिया रखकर उसको लिटा दिया और खुद उसके ऊपर आकर चोदने लगा.
चुदाई का यह सबसे आसान और प्रचलित आसन है.
कुछ लोग इस आसन में चोदते समय चूतड़ों के नीचे तकिया नहीं रखते इसलिये ज्यादा आनन्द नहीं ले पाते.
इसी आसन में चोदते समय यदि लड़की की टांगें अपने कंधे पर रख ली जायें तो क्या कहने.
बस यही याद आते ही मैंने डॉली की टांगें उठाकर अपने कंधों पर रखीं और अपने हाथों से उसके कंधे पकड़ लिए और राजधानी एक्सप्रेस दौड़ा दी.
अब मैं सीधे मंजिल पर पहुंच कर ही रुकना चाहता था.
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हर धक्के के साथ लण्ड का फूलना जारी था, फूलता जा रहा था और टाइट होता जा रहा था.
आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊह, उफ उफ, बस करो, यह आवाजें रुकने के बजाय और तेज करने का काम कर रही थीं.
दौड़ते दौड़ते मंजिल करीब आ गई और लण्ड ने पिचकारी छोड़ दी लेकिन मैं ट्रेन रोकना नहीं चाहता था.
मेरा वीर्य स्खलन हो चुका था लेकिन लण्ड ढीला नहीं हुआ था.
मैंने एक एक करके उसकी टांगें अपने कंधों से उतारीं और ट्रेन चलाता रहा.
ट्रेन की रफ्तार राजधानी एक्सप्रेस से घटते घटते पैसेन्जर ट्रेन पर आ गई तो ट्रेन रोक दी लेकिन प्लेटफार्म पर खड़ी रही, मतलब चोदना बंद कर दिया लेकिन लण्ड चूत में ही पड़ा रहा.
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मैं पसीने से तरबतर हो चुका था और निढाल होकर डॉली पर लेट गया.
उसने टॉवल से मेरा पसीना पोंछा तो मैंने उसे चूम लिया और दोनों ओर से चुम्बन की झड़ी लग गई.
रात भर चुदाई करके सुबह पांच बजे सोये थे.
जब नींद खुली तो देखा साढ़े नौ बज रहे थे.
मैं बाथरूम गया, फ्रेश हुआ और नहाकर आया.
कपड़े पहनकर तैयार हुआ तो देखा दस बज गये हैं.
मैंने डॉली को जगाया और कहा- तैयार हो जाओ, दस बज गये हैं.
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“अरे बाप रे …” कहते हुए वो बाथरूम में घुस गई और जल्दी से तैयार होकर आ गई.
मैंने तब तक नाश्ता आर्डर कर दिया था, हमने जल्दी से नाश्ता किया.
मैंने नोटिस किया कि उसकी चाल में कुछ बदलाव है.
मैंने पूछा तो बोली- दर्द हो रहा है.
मैंने पूछा- कहाँ?
तो अपनी चूत पर हाथ रखकर बोली- यहां.
मैं बेड पर बैठा हुआ था, उसे अपने पास बुलाया तो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई.
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मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला, सलवार नीचे गिर गई.
उसकी पैन्टी उतारकर मैंने घुटनों से नीचे तक कर दी और उसकी चूत देखने लगा.
उसकी चूत फूलकर डबल रोटी हो गई थी और एकदम लाल थी.
कमसिन जवान कॉलेज गर्ल की नंगी चूत देखकर लण्ड फिर खड़ा हो गया था लेकिन ऐसी हालत में चोदना मुनासिब नहीं था.
मैंने उसको बेड पर लिटा दिया और कोल्ड क्रीम से उसकी चूत की हल्की हल्की मालिश करने लगा.
इस बीच मैंने अपनी पैन्ट की चेन खोलकर लण्ड बाहर निकाल कर उससे कहा- अब राजा रानी का मिलन मुनासिब नहीं इसलिये तुम मुंह से और हाथ से मेरा डिस्चार्ज करा दो.
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उसने मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया, जब वो रुकी तो मैंने उसके हाथ में पकड़ाकर कहा- इसकी खाल इस तरह ऊपर नीचे करती रहो.
थक जाना तो मुंह में ले लेना और मुंह से थक जाओ तो हाथ से करने लगना.
मैं हल्के हाथों से चूत की मसाज कर ही रहा था जिससे उसे आराम भी मिल रहा था और आनन्द भी.
कभी हाथ से कभी मुंह से वो मुझे मेरी मंजिल के करीब ले आई थी.
मैंने उससे हाथ की स्पीड बढ़ाने और मुंह खोलने के लिए तैयार रहने को कहा.
उसने स्पीड बढ़ाई तो मैंने कहा- बीच बीच में मुंह लगाकर गीला कर लिया करो और जब मैं कहूँ मुंह में ले लेना, मैं तुम्हारे मुंह में डिस्चार्ज करुंगा, उसे गटक जाना,
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यह सबसे अच्छा पेनकिलर है, कानपुर पहुंचते पहुंचते ठीक हो जाओगी.
कभी हाथ कभी मुंह से होते होते वो समय आ आ गया कि मैंने उससे मुंह खोलने को कहा और कहा- जब तक मैं न रोकूं, तुम चूसती रहना और जो जीवन अमृत निकले गटकती जाना.
अब मैंने अपना लण्ड उसके मुंह में दे दिया, वो चूस रही थी लेकिन मेरी उत्तेजनाओं को काबू में नहीं कर पा रही थी तो मैंने दोनों हाथों से उसका सिर पकड़ लिया और उसके मुंह को चूत समझकर चोदने लगा.
कुछ ही देर में मेरे लंड से वीर्य का फव्वारा छूटा और उसका मुंह मक्खन मलाई से भर जिसे वो गटक गई.
वो अब भी चूस रही थी और मैं उसकी चूत की मसाज कर रहा था.
मैंने उसकी चूत पर हाथ फेरते हुए पूछा- रानी साहिबा को कुछ आराम मिला?
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मेरा लण्ड मुंह से निकाल कर डॉली बोली- हाँ, अब काफी आराम है.
मैंने उससे कहा- कपड़े पहन लो और कुल्ला कर लो.
मैं बाथरूम गया, अपना लण्ड धोया, हाथ मुंह धोया और कमरे में आकर रिसेप्शन पर फोन किया कि मुझे कानपुर तक ड्राप करने के लिए एक ड्राइवर चाहिए.
कुछ ही देर में रिसेप्शन से फोन आया कि एक ड्राइवर है लेकिन आठ सौ रुपये मांग रहा है.
मैंने कहा- नो प्राब्लम, बुलाइये उसको.
ड्राइवर आ गया तो हम लोग गाड़ी में बैठ गये. ड्राइवर गाड़ी चला रहा था, हम दोनों पीछे की सीट पर थे, डॉली मेरी गोद में सिर रखकर सो गई.
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जैसे ही गाड़ी कानपुर की सीमा में पहुंची तो मैंने ड्राइवर को छोड़ दिया और थोड़ी देर बाद घर पहुंच गये.